जाने कहाँ
वो लम्हा,
जब बेफिक्री थी,
मदमस्त ज़िंदगी थी
अल्हड़ शरारतें थी,
हसीं के बवंडर थे
जोशीली जवानी थी,
जब काम कम और बहाने ज्यादा थे
पल में रूठते,
पल में मनाये जाते थे
जब सब को खुश करके ख़ुशी के पल कमाए जाते थे
दिन रात का कोई अंतर् न था,
बस मस्ती के बहाने बनाये जाते थे ,
साथ पढने , साथ रहने ,
साथ होने का मज़ा था
दोस्ती के बिना जीवन सज़ा था
जाने कहाँ रह गया वो लम्हा ,
जाने कहाँ !!!!!