जाना है दूर
जाना है
दूर
बहुत दूर
तुम्हारा हाथ थामकर
जहां
न नफरतें हों
न टूटी हसरतें
कहीं जहाँ
तुम भर सको
मुझे आगोश में
महसूस कर सको
रूह तक मुझे..
समाकर तुम्हारे संग
खुद को मिटा दूं
बसता हो प्यार ही प्यार
ऐसा कोई जहाँ
मै हो जाऊं
मुक्त उनमुक्त
पाकर तुम्हारी छाया
जी सकूं
जिसे सब कहते हैं
जिंदगी
दोनों मिलकर बनाएं
नई परिभाषा मिलन की
अगर देना चाहो
कोई तोहफा उपहार
तो ले चलो
मेरे हमसफर
दूर बहुत दूर….
..
अंकिता कुलश्रेष्ठ
आगरा