“जानवर हो क्या?”
“जानवर हो क्या?”
ये जुमला हम अक्सर सुनते हैं और प्रयोग में भी लाते हैं। लेकिन अगर आप थोड़े ठंडे दिमाग से सोचेंगे तो मेरी तरह आपको भी लगेगा कि ये बात सरासर गलत है।
जहां तक मेरा मानना है कि हम और आप सभी लोग अपने घरों में पालतू जानवर रखने के शौकीन होते हैं। जिन लोगों ने अपने घरों में पालतू जानवर रखे होंगे वे उनकी आदतों व उनके व्यवहार से भली-भाँति परिचित होंगे।
मेरी समझ से इमोशन्स के मामले में जानवर इंसानो से कई गुना बेहतर होते हैं। इसलिए सिर्फ उनके रंग-रूप या उनके बोल पाने में असमर्थता के चलते उन्हें असभ्यता का प्रतीक मान लेना बिल्कुल भी जायज नहीं है।
उनमें भी हर तरह की समझ होती है, महसूस करने की क्षमता होती है और वफादारी के मामले में तो पूरी दुनिया का कोई भी इंसान उनका मुकाबला नहीं कर सकता।
वर्तमान स्थिति को हम सभी देख रहे हैं जहाँ इंसान दूसरे इंसान को मारने पर उतारू है, इंसानियत का नामो निशान लगभग मिटने ही वाला है हालाँकि इसके अपवाद भी हैं क्योंकि दुनिया में कुछ नेक इंसान भी हैं और इंसानियत की आत्मा को ये कभी नही मरने देंगे।
अगर हम और आप किसी गलत काम या असभ्य आचरण को जानवर की प्रामाणिकता दे सकते हैं तो जानवर भी अपनी भाषा मे आपस में वार्तालाप के दौरान किसी गलत हरकत के लिए कहते होंगे- इंसान हो क्या?
ये सुनकर हम सभी को बहुत अजीब सा लगेगा और ये लाजिमी भी है। इसलिए ऐसी स्थिति से बचने के लिए हम सभी को मिलकर प्रयास करना होगा ताकि इंसानियत की परिभाषा में किसी तरह का कोई बदलाव न हो और इंसान का दर्जा कम ना हो। जानवरों को प्रताड़ित ना करें और इन बेजुबानों के प्रति सहानुभूति बरतें।
# SAVE ANIMALS.