जानते हो मेरे जीवन की किताब का जैसे प्रथम प्रहर चल रहा हो और
जानते हो मेरे जीवन की किताब का जैसे प्रथम प्रहर चल रहा हो और तुम उसमें से एक खूबसूरत पन्नें जैसी हो जिसका प्रत्येक पन्ना अपने स्नेह और बेला के पुष्प की सुगंध सी मेरी आत्मा को स्पर्श कर लेती हैं, छू ही लेती है..
जैसे लगता है मेरे जीवन का प्रत्येक क्षण प्रत्येक अंश प्रत्येक प्रेम में तुम्हें समर्पित हैं हाँ मै तुम्हारे प्रति समर्पित हो रही हुँ पर सुनो शर्त ये हैं की तुम संग प्रेम बेशर्त हो कितनी शिकायतें हैं तुमसे, कितने सवाल जवाब करने है !तुमसे खामियों व खामोशियों कि फेरहिस्त न हो प्रेम में ये मुमकिन नहीं !
तुम दरिया की तरह शांत निर्मिमेष बहती रहते हो मेरे अंदर, और हम बात न करें तुमसे ये मुमकिन नहीं,हम प्रेम करे और खामोश रहें ये भी मुमकिन नही….🥰🥰
(स्वरा कुमारी आर्या ✍️)