जानती हो दोस्त ! तुम्हारी याद इक नाव लेकर आती है। एक ऐसी नाव
जानती हो दोस्त ! तुम्हारी याद इक नाव लेकर आती है। एक ऐसी नाव जिस पर कत्थई रंग के पाल बंधे होते हैं.. तुम्हें कत्थई ही तो पसंद था न। नाव लहरों पर.. धीरे-धीरे तिरती जाती है। उस घाट की ओर जहाँ तुम थी कभी..।
या कहूँ तो एक समूचा जीवन था कोई।
हा वही जीवन जो घाट के रेत से उठकर सीपियों के अंदर समाहित हो जाता था। वही जीवन जो घुटने के बल खड़े पानी मे झुके कीकर के पेड़ों पर स्नेह लुटाता था। वही जीवन जो लहरों के ऊपर ऊपर तैरता था उसके कम्प्पन में। वही जीवन जो तुम घाट के किनारे बैठ अपनी अनामिका से पानी मे गोल गोल कुम्हार की तरह हाँथ घुमा कर गढ़ती थी। वही जीवन जिसका स्पर्श मछलियों को रोमांचित कर देता था उनमें नृत्य भर देता था। वही जीवन जो घाट से उठ कर तमाम स्मृतियों को समेटे करारों पर उगे बूढ़े सरपतों के झुंड में, कांस के फूलों के बीच न जाने कहा खो कर रह गया।