जानकी का परित्याग
वस्तुतः जानकी का
परित्याग है
एक काल्पनिक कथा
जिसे न वाल्मीकि न ही
तुलसी ने है कहा।
यह क्षेपक है मात्र
किदवंतियां है इसका स्रोत
इसे कभी भी मानस
या रामायण ने नही
किया है अंकित
आर्य जगत सदा ही
रहा है संशंकित।
यह चाल है हमारी
ओजमयी पावन संस्कृति
को नष्ट करने की
बालू में से तेल निकालने सी
पर सनद रहे
हमारा सांस्कृतिक
सामाजिक जड़े नही है
इतनी कमजोर
कर ले अपसंस्कृति
कितना भी बरजोर
हटाना तो दूर
हिला भी नही सकती है
लोहे को लकड़ी से
काट नही सकती है।
बेशक आंधियां ऐसी
आती रहती है
मेमने की अनायास चेष्टा से
सिंह को कहाँ भय लगती है
हम तब भी डटे रहे
संभले रहे
चट्टान की तरह
आज भी सुदृढ है और
आगे भी रहेंगे एक
कप्तान की तरह।
सदा पूरे विश्व का
नेतृत्व करते रहे है
करते है और निर्मेष
करते रहेंगे
ऐसे प्रयास हमारे रास्ते
के पत्थर है
हमारे पाव को चोटिल
करने के बजाय
उनकी ठोकरों से
किनारे हटते रहेंगे
हम सदा की तरह विश्व
विजय की कामना
लिए डटे रहेंगे
विश्व गुरु थे और आगे
भी रहेंगे।
निर्मेष