जादूगरी और हकीकत
जादूगरी एक खेल है या हकीकत या हाथ की सफाई या नजरों का खेल शायद सबको मालूम है.
और जिसे मालूम नहीं है वह भी जानता है.
उसका हकीकत से कोई लेना देना नहीं है.
फिर भी देखता है.
क्यों ?
शायद सभी जवाब देने में समर्थ न हो.
और
जो समर्थ है वो भी जरूरी नहीं.
कि जो जवाब आप दें वहीं एकमात्र जवाब हो.
जी हाँ.
?
अगर उस जादूगर की हकीकत की जिंदगी पर हम लोग ध्यान दें.
तो उसके पास न पैसा होता.
न ही ढंग के पहनने वाले कपडे.
दूसरी बात यह की वह जो भी खेल दिखाता है.
आदमी को धड से अलग करना.
जितने पैसे बना देना.
किसी रस्सी को खुद मात्र पकड लेता है फिर चाहे मशीन से खिंच लें या ताकतवर आदमियों द्वारा
रस्सी खिंच न पावोगे.
क्या है ये सब ???
It’s a state of mind
Produced by a magician.
It’s a placebo my dear nothing else.
Beware of yourself.
मेरा सारा के सारा ध्यान.
महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं
तथा
कबीर के फक्कड़ स्वभाव पर है.
मृगमरीचिका में मृगतृष्णा तक.
आप विचारवान है.
आप खुद में स्वामी हैं !
आप इंद्रियों और उनके विषय को जानते है.
उनसे बाहर आना भी.
सत्यमेव जयते !
सत्य को जानोगे !
तभी तो जीतोगे !
जो आपको दिखाया जा रहा है.
परोसा जा रहा है !
सत्य नहीं हैं !
आप दर्शक है ,आप द्रष्टा है.
और ये ही दर्शन.
इसी से दर्शन-शास्त्र बना है.
डॉ महेन्द्र सिंह हंस