जादुई मंत्र
” क्या हुआ आज सुबह से मुंह क्यों लटका रखा है।भई आज तो तेरे लाड़ले पोते देवेश का जन्मदिन है ,तो कोई तैयारी नहीं कर रही “चाय पीते हुए रमेश जी ने पत्नी से पूछा।
“क्या तैयारी करूं।उसे तो होटल में अपने दोस्तों के साथ बर्थ डे मनाना है।वो क्लब जाकर ठुमके लगाने है।अरे,जो भी दोस्तो के साथ नाच-गाना करना है ,वो घर में ही कर लें। वहां हजारों रूपए खर्च करके परिवार से दूर बर्थ डे क्या मनाना है।बचपन से तो मैं उसका बर्थडे मनाती आई हूं घर में ,अब ये आजकल की यंग जनरेशन को न जाने कौन-सा फितूर सवार रहता है ,जो होटलों में पार्टी करते हैं। मैंने तो साफ मना कर दिया ,पर बहू उसकी जिद के आगे झुक गई।
चार दिन पहले भी वो देवेश के दोस्तों के साथ घर में कोई उसकी सहेली आई थी। कई देर तक सब अंग्रेज़ी में चटर-पटर कर रहे थे। मैंने बहू से कहा भी कि सब पर एकटक नजर रखें।ऐसे घर में ये दोस्तों का आना-जाना ठीक नहीं,न जाने कौन- कैसा है।पर बहू ने ही कह दिया कि मां जी आजकल ये सब कामन है । आजकल लड़कियां भी दोस्त की तरह आती-जाती है।मैं उन बच्चों के बीच में बार-बार दखलअंदाजी नहीं करूंगी
,देवेश को पसंद नहीं कि उसे टोका-टोकी करूं।
बताओं इसमें मैंने क्या ग़लत कहा ,घर के बड़ों का तो काम है , बच्चों को सही-गलत समझाना।इसे टोकना थोड़ी कहते हैं।मेरा कहने का मान तो आजकल रहता ही नहीं है किसी को। सब अपनी अपनी मर्जी करना चाहते हैं ” पत्नी निर्मला ने गुस्से से मुंह बनाकर कहा।
“शांत हो जाओं निम्मों ,आजकल का समय ही यहीं है।तुम क्यों अपना मन खराब करती हो।देखों हमने अपना जीवन खूब अच्छे से , आनंद से बिताया है।हम अपने हिस्से का जीवन अपने हिसाब से जी चुके हैं,अब बच्चों को अपने हिसाब से रहने दो।
ठीक है बड़े होने के नाते हम उन्हें सही -गलत बता देते हैं, क्योंकि हम उन्हें अपना मानते हैं तो हमसे कहे बिना रहा नहीं जाता,बाकि उन पर है कि वो हमारी बात मानें,समझे या नहीं।
अगर बुढ़ापे में आप बच्चों से मान-सम्मान चाहते हो तो एक सीमा के बाद मौन साध लेना चाहिए।
एक चुप्पी में ढ़ेरों सुख होते हैं। अगर हमारे मन का हो रहा है तो अच्छा है , नहीं हो रहा है तो चुप रहो ,समय उन्हें अपने आप सीखा देगा।
अब तुम्हारी उम्र हो चली है , परिवार से,घर से मोह हटाओं निम्मों।और घर में बेवजह की टोका-टोकी छोड़ दो,सुखी रहोगी तुम।
जीवन भर तो तुमने अपने हिसाब से घर सजाया है,घर चलाया है।अब हमारी उम्र हो चुकी है। इसलिए बच्चों पर जिम्मेदारी डाल दो,हम क्या सारा जीवन घर-गृहस्थी में ही उलझे रहेंगे।
हमें अपने धर्म-कीर्तन में समय देना चाहिए,अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए। खुशहाली से , हंसी-खुशी से अंतिम जीवन बिताना चाहिए।
उम्र के इस पड़ाव में हमेशा ध्यान रखों किसी से कोई उम्मीद नहीं रखों।तुम्हारा मान-सम्मान घर में हमेशा बना रहे इसलिए एक महत्वपूर्ण जादुई मंत्र बता रहा हूं
” मौन साधे,सब सधे”।
समझ आया निम्मों जी ,चलों अब लाड़ले पोते के जन्मदिन की खुशी में आज गर्मागर्म स्वादिष्ट हल्वा खिलाओं।
पति रमेश जी की बातें सुनकर निर्मला जी हैरानी से उन्हें देखें जा रही थी।
“अब देख क्या रही हो,अपने जादुई मंत्र की फीस तो लूंगा न…”रमेश जी ने कहा और पति-पत्नी दोनों खिलखिलाने लगे।