भजन_अजब गजब यो खेला रे.
.अज़ब गज़ब याे खेला रे.
कोण दातार कोण आझी रे.
सब ओर भुखमरी फैली रे.
सेठ मारे पेट से रेला रे ।
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खाण पीण के ढ़ंग रचे.
अभिमान रंगीला रे.
ऐसो आराम संग गुटबंदी रे.
यो हडफ रुप हुआ ठकुरेला रे.
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निंगले सबनै अकेले रै (चढ़ावा)
यो महेंद्र जीव दास “भूख का”(आहार)
मत छिनो अधिकार(कला/हुनर) छैला रे.
है एक अकेले जीव(प्राण) निराला रे.
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भावार्थ:-
इस दुनिया के रंग-मंच पर सब जीव उस प्रभुसत्ता में समान अधिकार रखते हैं ।
अपने आप को श्रेष्ठ सिद्ध करने की होड में.
किसी के अंदर छुपी प्रतिभा को न कुचले ।।
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धर्म जाति आदि की कट्टरता में अहित छुपा है.
जाति वर्ण वर्ग हुनर और मानवता की तोहीन है ।।