जाति बनाम जातिवाद।
जाति बनाम जातिवाद।
-आचार्य रामानंद मंडल
बिहार जाति आधारित गणना (The Bihar caste base Survey) पर उच्च न्यायालय, पटना तत्काल प्रभाव से रोक लगा देलक हय।कुछ लोग अइ आधार पर याचिका दायर कैले रहल हय कि अइसे जातीय विषमता बढत आ दोसर इ कि जनगणना कराबे के अधिकारी केन्द्र सरकार हय।जौकि बिहार सरकार के कहना हय कि इ जनगणना न हय बल्कि एकटा सर्वे हय।आ सर्वे करे के अधिकारी राज्य सरकार होइ हय।
पहिले उच्च न्यायालय गणना पर रोक लगाबे सं इंकार क देले रहय।तब याचिका कर्ता सर्वोच्च न्यायालय मे गेल। सर्वोच्च न्यायालय याचिका कर्ता के उच्च न्यायालय मे जाय के आदेश देइत उच्च न्यायालय के आदेश देलन कि तीन दिन के अंदर अंतरिम फैसला करय।तैय आदेश के आलोक में उच्च न्यायालय अप्पन अंतरिम आदेश मे जाति गत गणना जुलाई -२३तक रोक लगा देलक।अगला सुनवाई जुलाई में निर्धारित हय।
राज्य सरकार के कहना हय कि लोक कल्याणकारी योजना के लेल सांख्यिकी के आवश्यकता होइ हय। केते बार न्यायालयो एकर जानकारी मांगै छय।एकरा अभाव मे जन कल्याणकारी योजना के लागू करे मे व्यवधान होइ हय।
मंडल आयोग के लागू करे मे दिक्कत भेल रहय।वोइ समय मे १९३१मे भेल रहय जाति गणना के डाटा के आधार पर पिछड़ा वर्ग के २७प्रतिशत आरक्षण शिक्षा आ सेवा क्षेत्र मे देल गेलय। अनुसूचित जाति आ अनुसूचित जन जाति के जनगणना करे के प्रावधान संविधान में हय। लेकिन सामान्य वर्ग आ पिछड़ा वर्ग के जाति गणना के प्रावधान न हय।त जाति गणना के लेल जनकल्याण के लेल संविधान संशोधन करनाइ आवश्यक होइ जाय छैय। सामान्य वर्ग के बिना जाति गत डाटा के आर्थिक आधार पर १० प्रतिशत आर्थिक आधार पर आरक्षण भेंट गेल।जौकि संविधान मे आर्थिक आधार पर आरक्षण देवे के प्रावधान न हय। संविधान मे केवल सामाजिक आ शैक्षणिक पिछड़ापन के आधार पर शिक्षा आ सेवा क्षेत्र मे आरक्षण देवय के प्रावधान हय।
जौं समाज मे जाति हय त जाति के गणना आवश्यकता हय। तबे वोकर कल्याण के लेल आनुपातिक योजना बनायल जा सकल हय। हर जगह धर्म आ जाति के कालम भरल जाइ हय। लेकिन जौ गिनती के बात होइ हय त एकर अल्पसंख्यक जाति एकर विरोध करय हय।असल मे गणना के प्रजातंत्र में महत्व होइ हय आ वोइ गिनती से घबराइ हय। लोग अप्पन रोटी-बेटी के संबंध अप्पन जाति मे करय हय।हर जाति के अप्पन कल्चर हय। हर जाति के संघ -संघठन हय। संगठन त अंतरराष्ट्रीय स्तर तक बनऐलय हय।जातिवाद खूब करत परंतु जाति से घबरायत।कहत कि सामाजिक समरसता हय।आइयो समाज मे जातीय विभाजन आ विमषता हय। जातिगत विषमता बनल रहय अइ लेल जाति आधारित सर्वे के विरोध कैल जा रहल हय। माननीय उच्च न्यायालय के सभ तथ्य पर विचार करे के आवश्यकता हय।असल मे इ जाति बनाम जातिवाद के लड़ाई हय।
-आचार्य रामानंद मंडल सामाजिक चिंतक सह साहित्यकार सीतामढ़ी।