जाति-धर्म
जाति-धर्म
इंसान-इंसान के बीच
कितनी हैं दूरियां
इंसान-इंसान को
नहीं मानता इंसान
मानता है
किसी न किसी
जाति का
धर्म का
प्रतिनिधि
इंसान की पहचान
इंसानियत न होकर
बन गई पहचान
जाति व धर्म
हो गई परिस्थितियां
बड़ी विकट
विवाह-शादी
कार-व्यवहार
क्रय-विक्रय
सब कुछ में
दी जाती है वरीयता
अपनी जाति को
अपने धर्म को
जाति-धर्म ही
सबसे बड़ी बाधा है
मानव के विकास में
-विनोद सिल्ला©