जाति दलदल या कुछ ओर
जाति दलदल या कुछ ओर
-विनोद सिल्ला
भारत को अध्ययन-अध्यापन में कृषि प्रधान देश बताया/पढ़ाया जाता है। जो सरासर गलत है। भारत जाति प्रधान देश है। भारत में मानव-मानव के बीच जाति की बहुत मोटी दीवार है। अत्यधिक प्रयासों के बावजूद जिसे आज तक नहीं ढहाया गया। भविष्य में भी इन दीवारों को गिराया जाना टेढ़ी खीर सा प्रतीत होता है। हालांकि मुझे विश्वास है कि एक दिन यह दीवार धराशाई होगी। भले ही इस दीवार के गिरने में सौ वर्ष लग जाएं। लेकिन वर्तमान में जातीय दंभ बढ़ता जा रहा है। जिनकी सभी समस्याओं का मूल जाति है। जिन्हें जाति ने सताया है। जिन्हें जाति ने तड़पता है। जाति के कारण जिनकी बहन बेटियों को देवदासी बनाया गया। जिन्हें जाति के कारण पढ़ने नहीं दिया। जाति के कारण जिन्हें संपत्ति का अधिकार नहीं दिया गया। जिनसे जाति के कारण छुआछूत हुई। जिन्हें जाति के कारण तिल-तिल कर मारा गया। वे भी जाति को छोड़ने को तैयार नहीं। छोड़ना तो दूर की बात वे उसी जाति पर गर्व कल रहें हैं, जो उनकी सभी समस्याओं का मूल है।
ये शोषित लोग अपने-आप को बुद्ध के अनुयाई मानते हैं तो भी इन्होंने जातिवाद छोड़ देना चाहिए। बुद्ध ने अपने संघ का गठन समाज के बिखराव को रोकने के लिए ही किया था। वे पैंतालीस वर्ष तक जाति, धर्म, लिंग, भाषा, क्षेत्र सहित तमाम तरह के भेद-भाव के उन्मूलन के लिए प्रयासरत रहे। इन्होंने पूरे विश्व को मानव-मानव एक समान होने का संदेश दिया। बुद्ध ने अपने धम्म में जाति-पाति के लिए कोई स्थान नहीं छोड़ा।
ये शोषित लोग संत रविदास को अपना आदर्श मानते हैं तो भी जाति को छोड़ना होगा। सतगुरु रविदास जी अपनी वाणी में लिखते हैं :-
जाति-जाति में जाति है, ज्यों केलन में पात
रैदास मानुष ना जुड़ सके, ज्यों लो जात न जात
-#संत_रैदास
सतगुरु रविदास के अनुसार मानव जब एकता के सूत्र मैं नहीं बंध सकता जब जाति नष्ट नहीं हो जाति।
अगर आप फुले दम्पत्ति को अपना आदर्श मानते हैं तो भी जाति पर गर्व नहीं कर सकते। फुले दम्पत्ति आजीवन जाति-पाति तोड़ने के लिए प्रयासरत रहे। उनकी लिखी पुस्तक “गुलामगिरी”, “किसान का कोड़ा” अवश्य पढ़ें। समाज को जाति-पाति व रूढ़िवाद से बाहर निकालने के लिए उन्होंने सत्य शोधक समाज की स्थापना की।
ये शोषित लोग अगर अम्बेडकरवादी होने का दंभ भरते हैं तो भी उन्होंने अपनी जाति छोड़ देनी चाहिए। क्योंकि बाबा साहब डॉ अम्बेडकर ने लाहौर में अध्यक्षीय भाषण देना था। आयोजकों ने उस भाषण को पढ़कर आयोजन ही रद्द कर दिया। बाद में (Annihilation of caste) एन्हिलेसन ऑफ कास्ट के शीर्षक से प्रकाशित हुआ। जिसका हिन्दी अनुवाद मान्य. एल आर बाली ने “जाति-पाति का बीजनाश” के नाम से पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया। अन्य लेखकों ने भी हिन्दी अनुवाद के मिलते-जुलते शीर्षकों से पुस्तकें प्रकाशित की हैं।
शोषित लोग साहब कांसीराम को अपना आदर्श मानते हैं तो भी उन्होंने अपनी जाति पर गर्व नहीं करना चाहिए। साहब कांसीराम ने शोषित वर्ग से कहा था कि हमने जात तोड़कर जमात बनाना है। साहब कांसीराम का मानना था कि शोषित वर्ग के बिखराव का कारण जाति और धर्म ही है। अल्पसंख्यक समुदाय और शोषित जाति अपने घेरे तोड़कर एक जमात बन जाती हैं। तो यह जमात एक बहुत भी राजनीतिक, सामाजिक शाक्ति के रूप में संगठित हो जाएगी। फिर इन्हें हुक्मरान बनने से कोई नही रोक सकता।
इतने प्रयास हुए लेकिन शोषित लोग जातियों की दलदल से निकलने की बजाए उसमें धंसे ही चले गए। मानव जातिवाद की दलदल में इतना धंसा कि उसे अपनी जाति के अतिरिक्त न तो कुछ सूझ रहा और ही कुछ दिख रहा। विवाह-शादी अपनी जाति में, कुछ क्रय-विक्रय करना है अपनी जाति में, कूंए, तालाब, चौपाल, शमशान, धर्मस्थल सब कुछ जाति अनुसार बना लिए। इन जातीय घेरों को हमने कितना मजबूत कर लिया। आइए जाति रूपी बीमारी को समूल मिटाते हैं। भाईचारा बनते हैं। रोटी-बेटी साझी करते हैं। छोटे-छोटे घेरों से बाहर निकल कर पूरी दुनिया को अपना घर बनाएं।
-विनोद सिल्ला
गीता कॉलोनी, नजदीक धर्मशाला
डांगरा रोड़, टोहाना
जिला फतेहाबाद (हरियाणा)
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