जातिवादी मानव (कविता)
एक था मानव जो बन बैठा हिन्दू, मुस्लिम, सिख्य और ईसाई।
आकर जग में खो गई कहाँ मानवता यह सोचों जरा मेरे भाई।
मजहवी दंगों का बज रहा ऐसा अजब चारों ओर आज विगुल।।
रोकर बुरा हाल इंसानियत का मानवता त्रहि-त्रहि चिल्लाई।।
एक था मानव जो …………………………………………………..।
कहते हिन्दू राम, मुस्लिम कहे मेरा रहीम है सर्वाेच्च जग में।
बताते इसाई श्रेष्ट ईसा को, सिख्य श्रेष्ठ गोविन्द कोे जग में।
समाया सभी में एक ही नूर यह जग में बात सबने है भुलाई।।
एक था मानव जो …………………………………………………..।
कोई न जग में प्रेम प्रीत पूर्ण दृष्टिकोण को है आज अपनाता।
नफरतों और निन्दा का विष मनुज संसार में है आज फैलाता।
सद्कर्म और मावनवीय सद्गुणों से सबने अपनी प्रीत हटाई।।
एक था मानव जो …………………………………………………..।
पैगम्बर, ईसा के बोल सदा प्रेम व भाईचारे का पाठ सिखलाते।
नानकदेव और राम, कृष्ण मानव सेवा को ही सर्वाेपरि बतलाते।
मानव-मानव सेवा की अभिसिंचित परिभाषा सबने है झुठलाई।
एक था मानव जो …………………………………………………..।
कुरान, बाइविल, गुरूग्रंथ और गीता सिद्धान्त एक ही बतलाते।
आदर्शित स्वभाव के मानवीय गुणो का सिद्धान्त बतलाते।
बने सिद्धान्त मानव का ऐसा जिसमें इंसानियत हो समाई।।
एक था मानव जो …………………………………………………..।
मोहित शर्मा ‘‘स्वतन्त्र गंगाधर’’