जाता हुआ वर्ष
जाते हुए वर्ष के अंतिम सप्ताह
चलो कर लें साल का आकलन,
ले गये एक और वर्ष मेरी उम्र का
बंद हुआ जैसे सिक्के का चलन।
दिया जो तुमने भुला न पायेंगे
घर में सुख – चैन राहत सुकून,
लिया जो तुमने वो भी सुनायेंगे
प्रियजन सेहत काम का जुनून।
साथ मेरे ज्यादती की तुमने बहुत
ले गये शरीर, छोड़ गये मेरे -प्राण,
अधअंग बनाया छीना सहारा भी
छलनी हुए हम,लगा कलेजे बाण।
प्रवासी रहे, जब पहुचे निज धाम
रोगग्रसित हुए बीते गये कई मास,
परिचारिका – सेविका प्राणप्रिया
वक्त का मरहम टूट न पाई आस।
जैसेतैसे ऊबरे हुए न ठीक-ठाक
पत्नी पे छागये बन कालिया दंश,
तन – मन -धन प्रार्थना दुआ योग
सहयोग व्यर्थ,चुभा सीने मे अंश।
हे – प्रिय जाते वर्ष, कह देना
आने वाले से सर्वस्व हर लिया,
देदेना कुछ ऐसा कि आंसू पुंछें
खुश हो के भूलें जो खो दिया।
स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित
अश्वनी कुमार जायसवाल कानपुर