*जाड़े की भोर*
आ गया मौसम शरद ऋतु का अब
सब ने ओढ़ लिए है अपने अपने लिबास
सूरज ने भी पहन लिया है बादलों के ऊपर
फिर वही कोहरे का मोटा कोट
बचने की कोशिश कर रहे सब जाड़े से
मेमने भी निकलने को राज़ी नहीं बाड़े से
झूल रही जमे पानी की सिल्लियां छतों से
सबकी बढ़ रही मुश्किलें इस जाड़े से
बूढ़ी दादी ने संभाल लिया रसोई का किनारा
उसे जलते हुए चुल्हे का है अब सहारा
ये कमबख्त बिजली भी न चली जाए अब
मुश्किलों में न हो जाए इज़ाफा हमारा
बेचारे पशुओं का तो सर्दी से
और भी बुरा हाल हो रहा है
घूम रहे असहाय सड़कों पर
ठंड में जीना मुहाल हो रहा है
ढक दिया पहाड़ों ने खुद को
फिर बर्फ की मोटी चादर से
बुला रहे प्रकृति प्रेमियों को
आज अपने पास बड़े आदर से
जम गए है नदी नाले सारे
थम गई है जीवन की डोर
कोई दिख नहीं रहा बाहर
देखो न हो गई है भोर।