जाग हिन्द के वीर अमर
जाग हिन्द के वीर अमर
जाग हिन्द के वीर अमर रणभेरी में सिंह सा गर्जन कर
उठ म्रत्युंजय प्राप्त कर तू कुरुक्षेत्र में नया सृजन कर
हे शिव तू तांडव स्वरूप वीर अभिमन्यु तुझे बुला रहा
पार्थ है याचक पूकार सृहेंन्द्री आ युद्ध मे अर्जन कर
है वीर धरा शिवा की जमीं प्रचंड तुंग में स्वघोष भरो
हर रहा चीर दुशासन आओ गांडीव में रोष भरो
कृष्ण नहीं है हे रणधरा में जो पांचाली की लाज रखे
आ ज्वाला सी जलती साड़ी में अब तो नया होश भरो
धर्म की छाती थाती पर यूँ अधर्म न बढ़ जाए
करो सिंह परम वार ज्यों तल तक भाला गढ़ जाये
हे रक्षक तू स्वयं भू बन ये भारती तेरी राह तके
हो अंतिम संग्राम चंडी का घन ज्वाला से लड़ जाये
तू परम शक्ति है विशाल प्रभा अपनी शक्ति को घोर बना
इस असत्य की निशा को मिटा के नया सत्य का भोर बना
जामवंत न आएगा अब तेरी शक्ति को तू प्रज्वलित कर
ये शांत हिन्द ज्वाला को अब शीघ्र ही प्रचंड शोर बना
एल.एन. उपाध्याय