जाग नारी जाग
चल काट दे अंधेरे को सुबह हो गई
तू महान शिरोमणि कहाँ सो गई
तू शेरनी है हिन्द की
सिंहनी दहाड़ कर
तू भोग की ना वस्तु
अपनी खुद पहचान कर
तू वीर है वीरांगनी
वीरता की तू धनी
तू कालजयी सावित्री है
तू धर्म में सनातनी
आये कहीं पहाड़ तो
पहाड़ को तू तोड़ दे
बाधा बने जो नदियां तो
तू उसके रुख को मोड़ दे
पर्वतों को पार कर
अपना खुद इतिहास रच
स्वप्न को साकार कर
चंडनी सी फिर से नच
तू दुर्गा का रूप है
दुर्गावती बन तू
लक्ष्मी सी विकराल बन
ह्यूरोज़ पर टूट तू
तू पदमनी का स्वाभिमान
स्वाभिमान तू अपना जान
मूर्ति सी अब ना बन
लौटा ला फिर से अपनी शान
– पर्वत सिंह राजपूत
(ग्राम-सतपोन )