जाग जाग हे परशुराम
जाग जाग हे परशुराम,
छोड़ो अब चिर ध्यान ।
हो रहा सनातन धर्म विध्वंस,
गीदर की खाल में दिख रहा असंख्य कंश,
मानव बन कर भी दानव की है प्रतिमूर्ति,
जीवहन्ता दिखा रहा स्व निश्छल सुरती
लूट रहा प्राणी का प्राण,
आहुति दे रहा निर्दोष जीवन दान,
त्राहि-त्राहि मनुज पुकारे राम राम,
जाग जाग हे परशुराम,
छोड़ो अब चिर ध्यान ।
रक्तरंजित हो रही गंग – धार,
भारत माता विलख रही है द्वार – द्वार,
आर्यावर्त भूमि पर हो रहा संतों का अंत,
कबतक अत्याचार करेगा राज मतंग,
रक्षक ही भक्षक बन खड़ा लंबी पांत,
कहाँ प्राण रक्ष याचना करे हे नर तात,
खोल नेत्र, क्रंदन करता निज धाम,
जाग जाग हे परशुराम,
छोड़ो अब चिर ध्यान ।
तेरे फरसा में है आज भी वो शक्ति,
विध्वंस आनंदी के अंत से था न है विरक्ति,
उठा ले पौरुष निज दिव्य वाण,
मिटा दुराचारी के दुष्प्रभा चांन,
भूमि है वात्सल्या वंदनीया धरा
वीर है माटी के कण-कण में भरा,
फिर से चिह्नित कर निज नाम,
जाग जाग हे परशुराम,
छोड़ो अब चिर ध्यान ।
–उमा झा