जाग उठे जज्बात
सावन का आया महीना
हो रही है बहुत बरसात
प्रियतम नहीं है मेरे पास
मेरे जाग उठे हैं जज्बात
मेरे जाग उठे हैं जज्बात
हो रही है बहुत बरसात
आओ रे ! प्रियतम प्यारे
ले कर प्रेम भरी सौगात
शीतल पवन चल रही है
मन में उठते हैं प्रेम भँवर
जियरा निकलता जाए
कर दो उमंग तरंग शान्त
वर्षा की बूंदें हैं प्रहारी
बरस रहे है मेरे दो नैन
जागती अखियाँ हैं तरसे
दर्श दिखादो मन के मीत
काले काले उमड़े बादल
छाई काली घटा घनघौर
यादों का झरोखा सताए
कब होगी प्रिय मुलाकात
सुखविंद्र सिंह मनसीरत