“जाग उठी गर वहीं वीरता, किस्सें होंगे खत्म लकीरों के”
चट्टानों से टकरायें जो, आग में जल अंगार बनें।
तलवारों सी धार हो जिसमें, रक्त से जो श्रृंगार करें।
ऐसे वीर वीरता ऐसी, भारत तेरे वीरों में।
जो सदियों से छिपी हुई, इतिहास तेरी तस्वीरों में।
मौन खड़ी है बँधी हुई है, बिना किसी जंजीरों के।
जाग उठी गर वहीं वीरता, किस्सें होंगे खत्म लकीरों के।
कुमार अखिलेश
देहरादून (उत्तराखण्ड)
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