जागो
तुर्की, अरबी ,मुगल, मंगोल, बोल रहे वो बिगड़े बोल
बांट रहे हैं तुमसे तुमको हिन्द के मुस्लिम आँखे खोल,
आज भी तुमको नचा रहे हैं अपने एक इशारे पर
जामा मे वो बैठे हैं तुम हो बस चौक चौबारे पर,
देर बहुत हो जाएगी कब जागोगे कब सोचोगे
आखिर कब तक भारत के टुकड़े करके नोचोगे,
तुम भूल गये अपने पूर्वज अब गैरो पर इतराते हो,
तैमुर,गजनवी,गोरी को तुम अब्बा जां बतलाते हो,
याद करो इतिहास तुम्हें भी इन सबने ही रौंदा था,
दिल्ली की कत्ल कहानी में लाशों से बना घरौंदा था,
तुम सत्तर – सत्तर कहते हो पर वर्ष सात सौ बीते है
लाखो बार प्रहार सहा हम मर कर धर्म को जीते है,
वक्त है अब भी नींद से जागो खुद की खुद पहचान करो
जिस धरा पे तुमने जन्म लिया है उसका तो सम्मान करो