जागो।
देखो विघ्नों के बीच खड़ी है माता
जागो – जागो, अब जाग वीर हे भ्राता,
दुश्मन सीमा पर वह्नि प्रखर बरसाते
उठती लपटों में जलते और जलाते।
है ध्येय एक गुलशन में आग लगाना
सो रही मृत्यु को आकर त्वरित जगाना,
निर्दोषों के शोणित से रंगा वसन है
लोहित सरिता की धार, धरा व घन है।
इनमें न कहीं है दया – धर्म की धारा
मानस में अंतर्द्वन्द्व , नयन अंगारा,
मारे फिरते दुनिया के कलुष समेटे
बन सके न दायी बाप, किसी के बेटे।
शोलों के इनके शब्द ,अनल की भाषा
घातक आतंकों ने है इन्हें तराशा,
मानवता के तट पर से दूर खड़े हैं
आकण्ठ भरे पातक के पूर्ण घड़े हैं।
जीते बनकर आकाओं की कठपुतली
चेहरे पर अपने स्याह कालिमा पुत ली,
आतंकों के नित नये रंग में ढलके
मिलते कितने ही रूप यहाँ पर खल के।
आकर सीमा में विषधर है फुफकारा
लेकर जहरीले दंत , गरल की धारा,
जागो – जागो हे वीर दंत को तोड़ो
विष की धाराओं को पौरुष से मोड़ो।
निपटो उनसे जो करें पृष्ठ में खंजर
भारत में रहकर करें देश से संगर,
उन देशद्रोहियों को भी सबक सिखाना
बाहर के पहले घर की आग बुझाना।
कर दे धरती को लाल, रक्त से भर दे
माता के चरणों में अरि के सर धर दे,
गोले बरसाते हस्त हजारों काटो
नर – मुंडों से सारी धरती को पाटो।
दुश्मन गिरके जब तक निज हार न मानें
तेरी आँखों का बहता ज्वार न जानें,
फन को चरणों से होगा तुझे कुचलना
शोलों – अंगारों पर होगा नित चलना।
हिन्दू – मुस्लिम का भेद न यारों मानो
तू शूरवीर अपनी सत्ता पहचानो,
राणा प्रताप का रक्त तुम्हारी रग में
है कौन सहे तेरा प्रहार इस जग में!
हर द्वन्द्व छोड़ आपस के बनो सहारे
इस मातृभूमि के ही वंशज हैं सारे,
मंदिर – मस्जिद का वृथा तर्क, बँटवारा
है एक शक्ति जिसकी बहती शत – धारा।
कलह – फूट से देश नहीं चलता है
प्रतिशोधों का जब अनल जिगर जलता है,
अपने जब तक अपनों की कुटिया जारें
नित्य नई बनतीं दिल में दीवारें।
जब तक मानव अन्यायी के दर झुकता
दानव का बढ़ता क्रूर कदम न रुकता,
आलस्य बीच घिरके जब नर सोता है
सम्मान, धर्म, धन और धरा खोता है।
नत होने से सागर पथ कभी न देता
कलयुग, द्वापर, हो रामराज्य या त्रेता,
हे वीर उठा ले धनुष, दहकता शर है
बहती जिसकी रग आग बली वह नर है।
काँटों पर चल अरिजन से लड़ना होगा
धधके अंगारों से उर भरना होगा,
नयनों में उबले लहू, बहे चिनगारी
मरना ही है तो आज करो तैयारी।
निष्कंटक करना है भारत को जागो
विचलित करने वाले दुर्गुण सब त्यागो,
कह दो दुश्मन को वीर, बली हम आते
अस्त्रों – शस्त्रों के साथ ध्वजा फहराते।
अनिल मिश्र प्रहरी।