जागृत रहो निकेत
रहता शत्रु अदृश्य जब, जागृत रहो निकेत ।
जैसे बच्चों के लिए, …….माता रहे सचेत ।।
बलबूते पर स्वंय के, किया न जब कुछ खास ।
हाथ शत्रु का थाम कर,..रखें वो उनसे आस ।।
रमेश शर्मा
रहता शत्रु अदृश्य जब, जागृत रहो निकेत ।
जैसे बच्चों के लिए, …….माता रहे सचेत ।।
बलबूते पर स्वंय के, किया न जब कुछ खास ।
हाथ शत्रु का थाम कर,..रखें वो उनसे आस ।।
रमेश शर्मा