जागृति
ये कैसा ज़माना आ गया है बुद्धिजीवी चुप होकर बैठ गए हैं ,
धूर्त स्वार्थी चाटुकार मूर्खों के वारे न्यारे हो रहे हैं ,
गलत को सही और सही को गलत सिद्ध किया जा रहा है ,
सत्य की राह पर चलने वाले धक्के खा रहे हैं ,
झूठे , प्रपंची , धोखेबाज , सुख सुविधाओं की मलाई खा रहे हैंं ,
संस्कार , नीति , आदर्श , मानवीय मूल्य, कोरी बातें होकर रह गई हैं ,
शीलभंग, धोखाधड़ी ,चोरी , और लूटखसोट सरेआम हो रही है,
वर्तमान शासन व्यवस्था दौलतमंद रसूखदार बाहुबलियों के लिए साध्य है ,
जबकि आम जनता व्यवस्था की विसंगतियों को भोगने के लिए बाध्य है ,
देश की राजनीति जोड़-तोड़ की संख्या का खेल बन कर रह गई है ,
देश की आम जनता बेरोजगारी, लाचारी , बीमारी से त्रस्त भुखमरी का शिकार हो रही है ,
पुलिस वाले अपराधियों से सांठगांठ में संलग्न हैंं ,
जमाखोर व्यापारी ग्राहकों की जेब काटने में मग्न हैं ,
पैसे के जोर पर दबंग हत्यारे खुलेआम घूम रहे हैं ,
जबकि गरीब विचाराधीन आरोपी जेलों मे सड़ रहे हैं ,
न्याय प्रणाली लचर , विलंबित , अधिमान्य और दुरूह होकर रह गई है ,
आम आदमी के लिए न्याय की उम्मीद एक टेढ़ी खीर बन कर रह गई है ,
मानव के भेष में डॉक्टर दानव दिखते हैं ,
जो मरीज का खून चूस- चूस कर अपनी तिजोरी भरते हैं ,
जाति एवं धर्म के नाम पर आतंक की पाठशालाएं सज गई हैं ,
समाज सेवा के नाम पर संस्थाएं बनाकर लूटने वालों की कमी नहीं है ,
निरीह जनता राजनीति का मोहरा बनकर रह गई है,
दंगा फसाद कराकर अपना स्वार्थ सिद्ध करने वालों की कमी नहीं है ,
स्वार्थी प्रसार एवं प्रचार माध्यम द्वेष एवं अलगाव की राजनीति करने वालों की कठपुतली बनकर रह गए है ,
अनर्गल प्रलापों , मिथ्या एवं भ्रामक समाचारों से सनसनी फैलाकर जनसाधारण को बरगला रहे हैं ,
देश प्रेम , बलिदान , सांप्रदायिक सद्भाव की बातें भाषण तक ही सीमित रह गई है ,
सच्चे अर्थों में देशप्रेम , बलिदान , एवं सांप्रदायिक सहअस्तित्व की भावना में कमी आ गई है ,
देश की प्रगति का अग्रसर छद्म स्वरूप जनता को दिखाया जाता है ,
जबकि वास्तविक यथार्थ स्वरूप एवं विसंगतियों को झूठी घोषणाओं के आवरण मे विलुप्त कर छुपाया जाता है ,
हर त्रासदी , संकट एवं विषम परिस्थिति आम जनता झेलने को विवश विपन्न है ,
परंतु वरीयता प्राप्त वर्ग विशिष्ट का जीवन इन सब कष्टों से निरापद सुख संपन्न है ,
आम जनता में व्याप्त इस तंद्रा तिमिर को दूर कर जागृति का अलख जगाना है ,
अन्यथा वह दिन दूर नहीं , जब तथाकथित प्रगति पथ पर अग्रसर , इस देश को रसातल पर चले जाना है ,