जागृति
दुनिया देखने वाले क्या तुमने कभी खुद के अंदर झांक कर देखा है ?
अपने अंदर धधकती दावानल सी क्रोध , द्वेष , क्लेश की अग्नि को कभी पहचाना है ?
अंतरात्मा में उमड़ते घुमड़ते फिर कुंठाग्रस्त् होते स्वरों को कभी जाना है ?
ह्रदय में स्पंदित प्रेम , दया , सद्भाव एवं समर्पण भावों को कभी अनुभव किया है ?
मनस में छाए अहम् , स्वार्थ , द्वेष , घृणा एवं तिरस्कार भावों का कभी त्याग किया है ?
जीवन भर उपदेशक बने लगे रहे ज्ञान बांटते ,
कभी कुछ पल अपने अंतःकरण में भी झांक लेते ?
जिस ईश्वर को तुम हो मानते ,
जिसे बाहरी दुनिया में तुम हो ढूंढते फिरते,
वह तुम्हारे ही अंदर विद्यमान क्या ये नहीं जानते ?
प्रथम त्याग सर्वस्व जागृत करो अपने अंतः में आत्मज्ञान।
होगी अनुभूति शांति और संतोष की , पाओगे तब तुम अपने ही अंतः में भगवान।