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27 Apr 2020 · 5 min read

जागृति

चिंता एक मध्यवर्गीय परिवार की लड़की है ।वह लड़की के रुप मे जन्म लेती है इसलिए उसका नाम चिंता रखा गया ।और दूसरी ओर हर्षित करने वाला, पुत्र हर्ष के नाम से जाना जाता है ।
जन्म लेते ही भेद भाव दिखने लगा ।दोनो भाई बहन के रहन-सहन खान पान यहां तक कि पढाई लिखाई मे भी अंतर ।दिखने लगा था बेटी की पढ़ाई एक साधारण स्कूल और बेटे का चर्चित विद्यालय मे पठन पाठन का कार्य आरंभ हुआ ।देखे कितने भेदभाव से ओतप्रोत है – – – – ।
माँ -चिंता रे चिंता कहां किताब लेकर बैठी रहती है काम देगा वही किताब घर का काम धाम तो सीखना है नही अरे चिंता कहां हो ।
चिंता -हम आए माँ आ रहे है ।
माँ-तुम्हे दिखता नही दादी बीमार है थोड़ा धूप मे तेल मालिश कर दोगी तो क्या बिगड़ जाएगा ।
चिंता -दो चार ही प्रश्न बांकी है मेरे पास किताब भी नही है न इसलिए दूसरे के किताब से लिख रहे है आज किताब उसको देना है ।
मां -आग लगे तुम्हारी पढ़ाई में ।हम ही तेल लगा देते यदि बऊआ का खाना नही पकाना होता ।ठंडा का दिन है ।ठंडा खाना खाएगा तो खराबी नही करेगा क्या? इसको अपने भाई पर दरेगे नही है ।(पिता का आगमन होता है )
पिता -बड़ी चिल्ला रही है क्या हुआ?
माँ -क्या रहेगा जी!चिंता पप्पा को एक ग्लास पानी दे दो
चिंता -आए माँ बस एक question देखो न।
मां-अभो आओ बाप का भी ख्याल नही है ।
चिंता -(पानी पिता को देते हुए )पप्पा हमको एक गणित और व्याकरण का किताब लादीजिए न ।
माँ -चिंता! कभी फीस, कभी किताब, कभी काॅपी तुमको चाहिए ही।
चिंता-सर डांटते है
मां-चुप!चुप डांटते है हर्ष का फीस पहले दे देने दो।चार तारीख हो गया है ।
चिंता -हमारा तो छःमाह का बकाया है कहा गया है कि जो फीस जमा नही करेगी उसको विद्यालय से निकाल दिया जाएगा ।
पिता -हम पैसा रख कर अपना महल बना रहे है क्या कि तुमको ऐसा कहा जा रहा है ।दे देगे न।
हर्ष -पप्पा पप्पा !हम स्कूल की ओर से घूमने जाएगे ।
पिता -कब?
हर्ष -परसों परसों हमको एक हजार रुपये दे दीजिए न।
पिता -पहले न कहता ।इतना रुपये किसलिए।
हर्ष -नही पप्पा सर तो तीने सौ रुपए मांगे है बांकी हम घूमेंगे न तो खर्चवर्चा होगा न इसलिए हजार रुपये दे दीजिए न।
पिता -कल दे देंगे
हर्ष -नही माँ कहो न आज ही दे देगे ।
मां-कितना चुलबुल की तरह कर रहा है ।दे दीजिए न देना ही है ।तो आजे दे दीजिए न। सब बच्चा ले जाएगा और इसको नही मिलेगा अच्छा लगता है? दे दीजिए न।
चिंता -हमको भी पप्पा किताब – – –
माँ-भाई का खुशी अच्छा नही लगता है क्या? अब स्कूल नही जाना है? प्रश्न नही बनाना है? जाओ बऊआ का खाना बेग मे रख दो और अपना भी खाना ले लो जाओ
दादी -खों खों कहां हो हम कहते है न मत पढाओ तुम लोग समझते क्यों नही कहा गया है कि “करमें मीडिल त बोली मिर्चाय सन करमें जों बी . ए त हुकूम चलेथुन”।इसको घर का काम काज सिखाओ बेटी घर मे ही अच्छी लगती है। तुम सब खों खों
मां-मांजी पानी पानी ।
दादी -सोनार के यहाँ गई क्या? एगो मंगलसूत्र भी बनवा लो ।
मां -हां गए थे हम चिंता के पप्पा को कहना ही भूल गए 40 हजार रुपये और देना है
पिता -देखती नही स्कूल वाला माथा खाए है उससे ज्यादा चिंता हल्का कर रही है हम कहां से देगे ।
मां-अरे चिंता ज्यादा बोलती है ।हमको पहले 40 हजार रुपये चाहिए तो चाहिए ही ।
पिता -अच्छा अच्छा दे देंगे ।इतना क्यों हड़बड़ा रही हो । समय आएगा तो हम अच्छा लड़का उतारेंगे जी ! जो चिन्ता को गहना से लाद देगा ।
(विवाह की तैयारी हो रही है किन्तु चिंता की पढ़ाई की चिंता किसी को नही है ।)
चपरासी -संजू, आशा, प्रमिला, उदिता —– तुम सब इस मंथ का फीस जमा नही की है? सर बुला रहे है
संजू -पप्पा आज दे देंगे ।
चपरासी -चिंता तुम्हारा नाम हम सब को याद ही है ।तुम समय पर और पूरा पैसा नही ही देती हो।
उषा -तुम अपने पापा से समय पर पूरा पैसा देने को क्यों नही कहती हो
मृणालनी मेम-जानतीं नही हैं।आज कल के बच्चे अपने अभिभावक को कहना ही नही चाहते है क्यों चिंता ।- —- – ।
बगल से जा रही थी वागीश्वरी मैडम ने कहा :- चिन्ता अपने मम्मी पापा को क्यों नहीं कहती हो ।अरे बड़ी घाघ है ।पता नहीं ये सब बच्चे आगे चलकर क्या करेंगे ।ये सब समाज – – – ।
(चिन्ता घर पहुंचती है )
चिन्ता की माँ -आ गई ये सब गहना पहन कर देखो ।(मंगलसूत्र गले से लगा कर देखती है )चिन्ता झटक कर कहती है मेरी फीस के लिए तुम्हारे पास पैसा नहीं है और – -थपाक (मां एक तमाचा मारती है )
मां -निर्लज्ज! ‘मैया मरे धिया लिए धिया मरे मनचाहे यार लिए ‘पढकर कलेक्टर बनेगी क्या?
चिन्ता – मां सब कहते है हम फीस देना ही नहीं चाहते फीस – -(मां थपाक थपाक तुमको स्कूल भेज कर बहुत बड़ी भुल किए ।चिन्ता रोती रोती सो जाती है ।)
कुछ दिनों के बाद फिर विद्यालयी परीक्षा हुई ।
हर्ष – मां हम सर का चम्मचागीरी नहीं किए इस लिए हमको इतना कम नंबर दिए ।
चिन्ता भी हर्षित होकर कहती है मेरा नंबर तो कितना अच्छा है देखो, देखो मां ।
मां – हां क्यों नहीं घर में काम तो करती नहीं, स्कूल में मस्टरबा -मस्टरनी के जूते चाटती हो, नंबर क्यों नहीं अच्छा होगा ।मरे हर्ष को तो देखकर लोग जलते हैं तो नंबर क्या आएगा ।देखेंगे मैट्रिक परीक्षा में।पता नहीं चिन्ता पासो करेगी कि नहीं ।
समय गुजते देर न लगी मैट्रिक की परीक्षा भी हुई ।चिन्ता अंचल में प्रथम स्थान प्राप्त की और हर्ष फिर से फेल ।माता-पिता के साथ विद्यालय का भी नाम हुआ हर ओर चिन्ता चिन्ता होने लगा ।इसी खुशी पर विद्यालय में भव्य समारोह का आयोजन किया गया ।
उद्घोषक- ये हमारे लिए हर्ष की बात है कि चिंता, हमारे विद्यालय का नाम रौशन किया है, सच्ची लगन कर्मनिष्ठा के बदौलत एक साधारण लड़की भी उत्कृष्ट स्थान भी पा सकती है हमसबों की इच्छा है कि प्राचार्य महोदय चिन्ता को अपने हाथों से पुरस्कृत करें ।
(चिन्ता को पुरस्कृत किया जाता है )
प्राचार्य महोदय – आज मैं गर्वान्वि हो रहा हूँ ।जिसे व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है आज चिन्ता मेरे विद्यालय ही नहीं सम्पूर्ण अंचल की प्रेरणा श्रोत है ।मैं चाहता हूँ मेरी चिन्ता सम्पूर्ण देश की – – – । तालियों की ध्वनि हर दिशा को झंकृत कर दिया
मैं आज से चिन्ता का नाम चिन्ता नहीं जागृति रखता हूँ ।चिन्ता नहीं नहीं जागृति आप कुछ कहना चाहेंगी।
चिन्ता – जी सर! सर, मुझे मेरे नाम से कोई लेना-देना नहीं है मैं इस पुरस्कार का श्रेय अपने माता-पिता, गुरु जनों को ही देना चाहूँगी। हां एक प्रश्न अपने समाज से पूछना चाहती हूँ जब बेटा-बेटी एक ही घर में जन्म लेते हैं तो दोनो में भेद कैसा? यदि माता-पिता ही अपना नहीं समझेंगे तो क्या समाज उसे अपनाएंगे?
यह सुनकर चिन्ता के माता-पिता के आंखों में आंसू भर आए ।
चिन्ता के पिता माइक पर कुछ कह न सके और चिंता की मां बोली बेटा क्षमा करो।आज तुम्हारे ही कारण मेरा नाम ऊँचा हुआ है ।आज तक भीड़ में बैठ कर किसी को देखते थे, आज भीड़ हमको और तुम्हारे पप्पा को देख रही है ।क्षमा करो हम बेटा के मोह में बेटी को भुल गए थे ।क्षमा करो बेटा कहकर चिन्ता को गले लगा कर रोने लगती है – -समाप्त

Language: Hindi
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