जागृति
विनाश की विभीषिका के बाद नि:शब्दता की स्थिति की तरह अंत:करण में व्याप्त कोलाहल अब शान्त हो चुका है। मेरे अन्तरद्वंद में जीत मेरी दृढ़ता की हुई है।जिसने कथित रीती रिवाजों , परंपराओं, प्रथाओं और सामाजिक मूल्यों के नाम पर होने वाले शोषण के विरूद्ध आवाज़ उठा कर मानवता को शर्मसार होने से बचा लिया है। धर्म का कर्त्तव्य मानवाधिकारों की रक्षा करना है। इसके विपरीत कुछेक तथाकथित धर्म के ठेकेदार निहित स्वार्थों के लिये धर्म के नाम पर निरीह जनता पर अत्याचार कर अपनी प्रभुता और वर्चस्व कायम करने की कुचेष्टा कर रहे हैं। यह एक कटुसत्य है कि मानवीय मूल्यों की रक्षा में प्राणों की आहुती भी देनी पड़ सकती है।अस्तु निर्भीक स्वतंत्र मानसिकता वाले लोग नित प्रतिदिन होने वाले अमानवीय आघातों को सहन कर पशुतुल्य जीवन व्यतीत करने के स्थान विद्रोह कर मृत्यु को भी वरण करने के लिये भी तैयार रहते हैं।
हर किसी को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जीने का अधिकार है।परन्तु जाति, धर्म,संप्रदाय,समूह,और वर्ग के नाम पर होने वाले अत्याचारों एवं मानवाधिकार के हनन में लेशमात्र की भी कमी नहीआयी है। जिसका कारण कुंद मानसिकता, स्वार्थपरता,तुच्छ राजनीति, एवं राक्षसी प्रृवत्तियाँँ हैं। समय चक्र का आव्हान् है कि जनसाधारण में जागृति उत्पन्न की जाये जिससे इस प्रकार की विसंगतियों के विरूद्ध वातावरण बनाया जा सके और मानवीय मूल्यों की रक्षा की जा सके।