जागीर
चलो चलें हम सौंप दें, अपनी सब जागीर
बंधन मन के तब खुलें, चलती जहां समीर
है अच्छा वो वक़्त जो, करें फैसले आप
घर के तुम मुख्तार हो, युग की तुम जंजीर।।
सूर्यकांत द्विवेदी
चलो चलें हम सौंप दें, अपनी सब जागीर
बंधन मन के तब खुलें, चलती जहां समीर
है अच्छा वो वक़्त जो, करें फैसले आप
घर के तुम मुख्तार हो, युग की तुम जंजीर।।
सूर्यकांत द्विवेदी