जागरण ही मुक्ति द्वार है..एक प्रयास इस ओर.
मैं कुछ कहता.
इससे पहले सबकुछ कहा जा चुका था.
कुछ ने अमल कर नकार दिया.
अपने निज अनुभव से काम लिया.
कुछ अनसुने रह गये.
कुछ को सुनना था.
बाकि को शिक्षा में लागू करना था.
नया कुछ न था.
बस शक्ति से लागू करना था.
कट्टरता को कट्टरता से हरना था.
बातें अनुभव की नहीं करते.
उदाहरण नहीं बनना चाहते.
जोर उस पर धरना है.
हम है कुल श्रेष्ठ सूर्यवंशी चंद्रवंशी .
कोई नहीं कहता
आज भी हम रह गये आदि-वासी.
वे तो खोजी थे.
भले कुत्ता पाला या चकमक से आग जलाई.
फलाहार किया चाहे खाये कंद कंद्रा मूल
या खाया भूनकर पशु पक्षी .
तुम कौन सनातनी पर फक्र करते हो.
जो कथा काल्पनिक करते हो.
आधुनिक युग में कलिपुर्जों का प्रयोग कर उनका उपयोग सीखने सिखाने की बजाय पूजा पत्थर की करते हो.
ध्यान तुम्हारा भटके.
दोष प्रभु पर रखते हो.
कौन कहेगा अपने मंतव्य पर चलते हो.
कल्पना के चक्रव्यूह को समझे.
तुमने खुद आधार रखा.
खुद ही उसमें उलझते हो.
ओम आमीन व्यर्थ के उच्चारण करते हो.
मंत्र जिसका नाम रखते हो.
खुद ही बंधे हो.
स्वयं ही मुक्त होना है.
क्यों व्यर्थ वक्त जाया करते हो.
तोड़ दो गुलामी के वो सब अर्थ जिनसे तुम बंधन में हो .
वारहा वरहा की वो उत्पत्ति की दंत कथा जिसमें उलझे हो.
विज्ञान ने उसे ओरनाल यानि Placenta कहा है ।
या तो जानो .
या जागो .
जानना/जागरण ही मुक्ति द्वार है .।।