जागती है रात
सोता है दिन-
जागती है रात,
दिन का उजाला-
अब बनता है पाप।
कौन किसे रोके-
कौन किसे टोके,
दृष्टि पर सभी के –
है मटमैली राख ।
कर्म जले,
धर्म जले,
ति ल ति ल,
कर्तव्य जले,
धरती से गगन तक-
धधकती है आग।
मटमैली सुबह हैं-
चमकीली शाम,
काम से ही काम-
सबको हर सुबहो शाम,
अनाचार जीवन मे-
बन बैठा धाम।
सोता है दिन,,,,