…जागती आँखों से मैं एक ख्वाब देखती हूँ
…जागती आँखों से मैं एक ख्वाब देखती हूँ
किस कदर दुनिया को हालत में गिरफ्तार देखती हूँ
मैं गुम हूँ कहीं और कभी खामोश
हूँ खुद में…..
बदले हुए ज़माने की रफ्तार देखती हूँ
जागती आँखों से एक ख्वाब देखती हूँ
तर के -ताल्लुकात को पहले सोचना पढता था बार बार.
.अब
करते हुए सब को लगातार देखती हूँ ……
जागती आँखों से एक ख्वाब देखती हूँ
जंग हर मुल्क से मुल्क की तो
चलती ही
है
हद ये के है के लड़ते हुए अब किरदार देखती हूँ
जागती आँखों से मैं एक ख्वाब देखती हूँ
मसरूफ हूँ मैं मुझे फुर्सत ही कहा है कुछ
दिन रात मैं अपने लफ्जों का कारोबार देखती हूँ….
जागती आँखों से मैं एक ख्वाब देखती हूँ
तुम भला मुझ को क्या समझ पाओगे ऐ अहले ज़माना
तुम्हें मालूम नहीं है मैं अपने खुदा पे खुद का ऐतबार देखती हूँ
जागती आँखों से मैं एक ख्वाब देखती हूँ
………………ShabinaZ