जाको राखे साईयाँ मार सके न कोय
मेरे घर के आगे हे
सेमल का पेड़ है।
पेड़ काफी ऊँचा,बड़ा
और घना है ।
उस पर कई चिड़ियों ने
अपना डेरा डाल रखा है।
उस पर कौआ और चील
का भी हें बसेरा।
चील करता रहता था
कौआ और चिड़ियों को परेशान ,
यह सब देख कर मैं भी हो जाती थी हेरान।
पर चील को कहाँ इस बात का
एहसास हुआ करता था।
वह तो अपने ताकत के
अंहकार में जीता रहता था।
एक दिन पंतग के धागों
मै चील फँस गया ।
और धागों के संग वह
उल्टा लटक गया।
यह सब देख वहाँ कौआ
काँव- काँव करने लगा,
चील की मदद करने के लिए
अन्य चिड़ियों को बुलाने लगा।
यह सब आवाज सुनकर मेरा
भी ध्यान उधर गया
और मैंने देखा की चील
उल्टा है टंग गया ।
वह उल्टा टंगा हुआ था
मेरी तरफ ऐसे देख रहा था,
मानों वह हमसे मदद की
उम्मिद जता रहा हो।
इस क्रम में तब तक काफी
रात हो चुकी थी,
और मैं क्या करूँ
इस प्रश्न में घिरी हुई थी।
साथ मे बच्चे भी उसे देख
परेशान थे।
रात काफी हो चुकी थी और
अब कुछ नहीं हो सकता ।
यह सोच हम लोग सोने चले गए।
सुबह उठी तो ऐसा लग रहा था
जैसे चील मर गया है।
अफसोस जताते हुए हम लोग
अपने- अपने काम में लग चुके थे।
दोपहर के समय बूँद- बूँद
थोड़ी बारिश होने लगी।
बारिश की बूॅदे पड़ते ही
चील फड़फड़ाने लगा।
यह देख मेरे बेटे और बेटी ने
आवाज लगाई ।
देखो मम्मी चील अभी भी जिन्दा है।
इतने देर में मेरे पति भी अस्पताल से आए ।
फोन निकाले और लग गये हेल्प लाइन नंबर लगाने में।
फोन की घंटी बज गई ।
पति ने सारी कहानी बताई ।
आधे घंटे के अंदर
फायर बिग्रेड की गाड़ी आई।
सबने सीढी लगाकर
चील को नीचे उतारा।
चील भी थोड़ी देर
बैठा और सुसताया।
फिर आसमान की ओर
अपना पंख फैलाया।
खुशी सबको इस बात की हो रही थी,
की लगभग 36 घंटे बाद भी
चील जिंदा बच गया।
इसलिए कहा गया है,
*जाको राखे साईयाँ
मार सके न कोय*
इसके बाद चील मे एक
अजीब परिवर्तन आया ।
वह कौआ और चिड़ियों
को सताना छोड़ चुका था ।
और वह हर रोज़ मेरे छत के मुंडेर पर
आकर बैठ जाता है।
जैसे हम सब को वह धन्यवाद दे रहा हो।
~अनामिका