न जांण कख पैट्यां छ?
गढ़वाली भाषा में पलायन पर वर्णित##
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घर कुड़ी तैं,छोडी-बाडीक, न जाण कख पैट्यां छा,
बै-बुबों, भाई-बहणौं तैं,छोडी–छाडीक न जाण कख पैट्यां छा,
डोखरी-पोखरी, बांझी छोडीक,न जाण किलै पैट्यां छा।
कथगा वर्ष ह्वै ग्या,गौं-घर अपणा छोड्यांं,
कैका सुख-दुख मा, शामिल ना ह्वै सक्यां,
अपणा ही रंत-रंगत मां हम सदैं लग्यां रया,।
बोई-बुबा न ब्यो करी, अपणा काम मां हाथ बटोंण कि खातिर,
हमुन कजाणी तैं साथ लिग्या, अपणा खाण-पकौण की खातिर,
नौना-नौनी ह्वै ग्या अब, अब रुक्या पढौण-लिखौण की खातिर।
जिंदगी कट ग्या हमारी, कुछ रुपयों की चाकरी मां,
नौना भी पढ़-लिख ग्या,लग ग्या सी-भी कखी नौकरी मा,
नौनी भी बिवैय याली , नौना भी बिवै याली,
हम इकला रै ग्या, फर्ज अपणु निभौण मां।
अचानक या विपदा आई,कनी या बिमारी छाईं,
घरु मां लुक ग्या सब,लौकडाऊन लगै दियाई,
कुशलक्षेम नी पुछणु कोई, इकलवास होई ग्याई,
दगड़ मां नी छ कोई,ह्वै ग्या सब पराई,
गौं जायूं चैंदू हम तैं,तब हम यूं ख्याल आई।
पैट ग्या तब हम घरुक तैं,लटी-पटी बटोली आया,
धेली-रुपया रखी साथ, घरुक लौट आया,
सोचणु लग्यां हम, अब अपणा गौं-घर जौंला,
मौर भी ग्या जू तख, अपणा घाट मा फुक्यौला,
सद्गति मिली जाली,अपणी मातृभूमि मां मिली जौंला।
गांव मा पहुंच्यां जब,कोरोनटीन कौर द्या,
गौं वालौंन हम तैं,स्कूलु मां लिग्या,
तखी हमारु खाणु-पैणु,तखी हमारु रैणु छा,
तखी हमारु नैणु-धुयेणु,तखी हमारु घुमेणु छा।
जौं गांव वालों से न कभी,हमुन व्यवहार नी राखि,
आज सी-ही गांव वासी, हमारी सेवा सुश्रा मां राई,
गौं गलौं का लोग भी मिलणु-जुलणु औणी छाई, ंं
अपणा-अपणा,घरु से, खट्टी-मीठी लौण्या छाई।
शहरुं मा छः भिडकोट मच्यूं, कुई बात नी करणु छाई,
गांव गांव मा छ अपणु पन,यूं हमु तैं, महसूस ह्वाई,
आज हम पछताणा छा,कख हमुन जीवन गंवाई,
नौनी-नौना भी अपणा नी होया, क्या हमुन कुछ कमाई।
आज मी बताणु छौं, अपणा गौं-घर मां लौट आवा,
डोखरी पोखरी अपणी बणावा, शुद्ध नाज-पाणी खावा,
घर-कुडियों तैं,सुधारा अपणा,रणु लै तैं त्यूं बणावा,
स्टे होम कू जमानु अईगे,द्वी पैसा यांसे कमावा।
कख अब तुम पैट्यां छा भाई, अपणा गौं-घर बौडी आवा,
गौं गला बुलाणा छां,लौटी आवा,लौटी आवा ।।