उनके होंठों पर हंसी पहले न थी
उनके होंठों पर हंसी पहले न थी
यूँ चमन में ताज़गी पहले न थी
साथ होने की ख़ुशी पहले न थी
ज़िन्दगी इतनी भली पहले न थी
ये रिफ़ाक़त की कमी पहले न थी
इतनी आँखों में नमी पहले न थी
झूट रिश्तों में पनपता जा रहा
इस तरह बाज़ीगरी पहले न थी
अब मुहाना पास ही सागर का है
ज़ोश में इतने नदी पहले न थी
आजकल तो क़त्ल कितने हो रहे
खूँ से भीगी तिश्नगी पहले न थी
प्यार पाकर उड़ रहा है आज वो
ये ख़ुशी ‘आनन्द’ की पहले न थी
~ डॉ आनन्द किशोर