ज़ैद बलियावी की ताज़ा शेर
अपने हौसलों की रफ्तार बचाना मुश्किल है..
नफ़रत में डूबे अख़बार बचाना मुश्किल है..
चला रहे हो खंजर तो काट दो गर्दन भी..
सर झुका दिया तो दस्तार बचाना मुश्किल है..
जिनकी फितरत है कि मंज़िल से रोके सबको..
ऐसे लोगो से पांव बचाना मुश्किल है..
डर जाओ अगर बातिल की मुखालिफत से तुम..
तो ऐसे दौर में ईमान बचाना मुश्किल है..
जब मज़हबी आग में लोग भेड़िया बन जाए..
तो ऐसी आग से इंसान बचाना मुश्किल है..
जो बेख़ौफ होकर तुम सच बोलोगे,
तो अपनों से ही जान बचाना मुश्किल है..
मुमकिन है अगर घर-ओ-दरबार बचा भी ले..
तो खरीदारों से अपना सरदार बचाना मुश्किल है..
(ज़ैद बलियावी)