ज़ेहन हमारा तो आज भी लहूलुहान है
कभी ईमानदार फुर्सत से बैठिये
सामने आईने के और झांकिये आंखों में अपनी
कसम सेना देख पाएंगे
वो छुपा मुखौटे के पीछे का वो चेहरा
आईना जब देगा दिखा वो पल
छुपा के छल अपनी आँखों में लगा मुखौटा
वो मुस्कुराता सा ,
चेहरे पे लिए बर्फ सी वो बेजान मुस्कराहट
नकली किये थे कितने ही वायदे झूठे
हमारी ही आंखों का था
पर्दा वो गहरा इतना
ना देख पाया
आपके हाथों का छुपा खंज़र
दग़ा भी दिए आपने कुछ इस तरह
के दामन आपका दाग़दार ना हुआ
गोया ज़ेहन हमारा तो
आज भी लहूलुहान है
अतुल “कृष्ण”