ज़ेब
बाबूजी जिसमें गहराई देखते,
माँ को लगती हमेशा लंबी कम,
भाई के हाथ की होड़ में ,
बहन का गुमान है बढाती ।
वह चीज ही ऐसी जिसपर ,
दुनिया ईतराती।
पत्नी खुशी खुशी उसमें सदा सेंध मारती,
पति की मेहनत को फिर भी नाप न पाती ।
बच्चों के अरमानों की बस्ती बसाती ,
वह चीज़ ही एसी जिसपर दुनिया ईतराती।
दर्जी ही जिसको सुन्दर बनाता
मज़बूत बनाने की कश्मकश में ,
किसी गरीब की मजबूरी छुपाता।
सबकी आन और शान है बनती
वह चीज़ ही ऐसी जिसपर दुनिया ईतराती।
आदमी को इंसान बनाती ।
कटी ,फटी हो तो मान गिराती।
जैसी भी हो ,सबको अपनी ही भाती
वह चीज़ ही ऐसी जिसपर दुनिया ईतराती।
जय हो जिनकी ज़ेब बड़ी हो
पर फिर भी सबकी अपनी ही हो।
ज़ेब की पूजा ,ज़ेब का कोना
हर रिशते में जैसे मिठास का होना ।
तेरी हो या मेरी हो, पर सभी की
जेब भरी हो।।।।
आरती गुप्ता ।