ज़ुल्मत की रात
खुलेआम ऐसी गुंडागर्दी
जंगल है कि शहर है यह
दूर करो यहां से बर्बरता
देश के लिए ज़हर है यह…
(१)
पुलिस वालों के सामने ही
ये लूट, मार और आगजनी
हम जैसे शरीफों के लिए
कितना बड़ा क़हर है यह…
(२)
प्यार, दोस्ती, भाईचारा
सब कुछ बह गया जिसमें
अंधी वतन परस्ती की
कैसी उन्मादी लहर है यह…
(३)
डुबकी लगा रहे हैं जिसमें
पुजारी, सेठ और वज़ीर
आंसू, ख़ून या तेज़ाब
आख़िर किसकी नहर है यह…
(४)
वे लोग होंगे खुशनसीब
जो देख पाएंगे नई सुबह
ज़ुल्मत की इस रात का
जाने कौन-सा पहर है यह…
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Shekhar Chandra Mitra
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