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11 Dec 2016 · 1 min read

ज़ुल्फ़ो के पेच-ओ-ख़म में गिरफ़्तार रहने दो

ज़ुल्फ़ो के पेच-ओ-ख़म में गिरफ़्तार रहने दो
तीर- ए- नज़र ही काफ़ी है तलवार रहने दो

ठोक़रों ने सिखा दी दुनियाँदारी अच्छी
हाय सच अधूरे छापें हैं अख़बार रहने दो

लम्हा- लम्हा भारी है रुके- रुके से कदम
मेरे रब्बा कुछ दिन तो इतवार रहने दो

ना दिल ही मिल सका ना मिज़ाज़ इनका
हिंदुस्तानी जोड़ो का क़िरदार रहने दो

उम्र-ए-दराज़ काट दी जहाँ का होकर या रब
अब ज़ीस्त पर अपनी मुझे हक़दार रहने दो

होंठों पे लरज़िश है कुछ तो ज़बान खुली है
ग़ज़ल-ए-ज़िंदगी ना सही अश्-आर कहने दो

सिज़दे में सिर झुकाए तस्वीर हो चली क्यूँ
ख़्वाहिशों का ए ‘सरु’ अब अंबार रहने दो

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