ज़ुल्फ़ो के पेच-ओ-ख़म में गिरफ़्तार रहने दो
ज़ुल्फ़ो के पेच-ओ-ख़म में गिरफ़्तार रहने दो
तीर- ए- नज़र ही काफ़ी है तलवार रहने दो
ठोक़रों ने सिखा दी दुनियाँदारी अच्छी
हाय सच अधूरे छापें हैं अख़बार रहने दो
लम्हा- लम्हा भारी है रुके- रुके से कदम
मेरे रब्बा कुछ दिन तो इतवार रहने दो
ना दिल ही मिल सका ना मिज़ाज़ इनका
हिंदुस्तानी जोड़ो का क़िरदार रहने दो
उम्र-ए-दराज़ काट दी जहाँ का होकर या रब
अब ज़ीस्त पर अपनी मुझे हक़दार रहने दो
होंठों पे लरज़िश है कुछ तो ज़बान खुली है
ग़ज़ल-ए-ज़िंदगी ना सही अश्-आर कहने दो
सिज़दे में सिर झुकाए तस्वीर हो चली क्यूँ
ख़्वाहिशों का ए ‘सरु’ अब अंबार रहने दो