ज़िन्दगी
एक झोंके ने
कुछ बातें पुरानी,
ताज़ा बना गई ।
मोतियों की चमक,
साँसों की गुलाबी
महक छा गई ।
कुछ परतें
जमी थी जिल्दों पर,
पन्ने फड़फड़ा उठे
रंग-बिरंगी ,
दफ़्न तस्वीरें
नज़र आ गईं ।
टुकड़ों में बंटी
तितर-बितर फैली,
गाल फुलाए अकड़ी ,
अब तक की ज़िन्दगी ,
नज़र पीछे सरसरी जो डाली,
बेचारी नज़र आ गई !
नरेन्द्र ।