ज़िन्दगी से खिलवाड़
यातायात नियम उल्लंघन कर चलते हैं सड़कों पर
मुसीबतों को क्यों दावत दे कर चलते हैं सड़कों पर।
दो लोगों की जगह है होती बैठे हैं छः लोग मगर
सोचो कोई बड़ा हादसा हो जाता है साथ अगर
कौन भला दोषी होगा ये लोग या फिर इनका भगवान
जिसमें दुर्घटना संभव है चलते हैं क्यों वही डगर
खेल तमाशा कितने करतब कर चलते हैं सड़कों पर
यातायात नियम उल्लंघन कर चलते हैं सड़कों पर।
एक सवारी के बदले अनगिनत सवारी चलते हैं
अपने सर तलवार मौत की ले दो धारी चलते हैं
सर पर नहीं हेलमेट किसी के और न कोई सुरक्षा है
सड़क सुरक्षा के नियमों को ताक पे रखकर चलते हैं
जाने क्यों रख जान हथेली पर चलते हैं सड़कों पर
यातायात नियम उल्लंघन कर चलते हैं सड़कों पर।
करते हैं खिलवाड़ जिंदगी से यह नहीं समझते हैं
एक साथ में कई ज़िन्दगी ये ख़तरे में रखते हैं
होगा जब भी कोई हादसा दोष मढ़ेंगे औरों पर
पर अपनी परवाह कभी भी स्वयं नहीं ये करते हैं
ये कानून की हंसी उड़ा कर चलते हैं सड़कों पर
यातायात नियम उल्लंघन कर चलते हैं सड़कों पर।
रिपुदमन झा “पिनाकी”
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक