ज़िन्दगी से आस रखिये और चलिये।
ज़िन्दगी से आस रखिये और चलिये।
हौसला भी खास रखिये और चलिये।
मशविरे पर और कुछ तालीम पर भी,
आप बस विश्वास रखिये और चलिये।
कोसने से कुछ नहीं मिलता मुक़द्दर,
सोच को बिंदास रखिये और चलिये।
चाहते गर हो ज़फ़र हर जंग में फिर,
जीतने की प्यास रखिये और चलिये।
साहसी का ही मदद करता ख़ुदा भी,
सच यही अहसास रखिये और चलिये।
उफ़्क छूने की अगर जो लालसा हो,
मन तले इख्लास रखिये और चलिये।
भागना इल्लत सचिन नाकामियों का,
सोचिये आभास रखिये और चलिये।
ज़फ़र – विजय
उफ़्क – क्षितिज
इल्लत – दोष, बुरी आदत, बीमारी, बहाना
इख्लास= प्रेम, सच्चाई, शुद्धता, निष्ठता
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’