बेगरज जिंदगी
दौलत बेहिसाब कमाना चाहता है
ज़िंदगी बेगरज बनाना चाहता है
हिमाकत की भी कोई हद होती है
वह दस्तार तक आना चाहता है
रिश्तों की डोर तो टूट ही चुकी है
दिल मिलने का बहाना चाहता है
डोर भी अता कर भरपूर मुझको
अगर मुझे ऊंचा उड़ाना चाहता है
अपने जिगर को करो तुम भी वसी
दिल में तुम्हारे कोई ठिकाना चाहता है
खुद के किए पर पशेमा है वह इस कद्र
मैं रूठा नहीं, वह मनाना चाहता है