ज़िन्दगी गुजर गई मगर गुजारा न हुआ
चाहा बहुत हमने मगर इशारा न हुआ
हमसे होकर निकल गए हमारा न हुआ
ताकते रहते है आज भी उस राह को हम
जिस राह में आना उनका दोबारा न हुआ
चल तो दिए थे हम वक्त की बाँह थामे
ज़िन्दगी गुजर गई मगर गुजारा न हुआ
कैसे कहूँ कि वो रखते थे इत्तिफाक हमसे
इत्तिफाकन ये काम उनको गँवारा न हुआ
हसरतों के दीप में जली यूँ इन्तजार की लौ
दिल की दहलिज से दर्द का किनारा न हुआ
जीने की खाते थे कसम वो “प्रेम” से कभी
जान आँखो में रही मगर वो नज़ारा न हुआ॥