ज़िन्दगी की शाम ढलती चली गई !
ज़िन्दगी की शाम ढलती चली गई !
उम्मीदें हाथ से फिसलती चली गई !
ये वक़्त का कारवाँ रुका नही कभी,
शक्ल मजबूरियाँ बदलती चली गई !
पहुँची न हसरतें मंज़िले मक़सूस तक,
नाकामियाँ हमें निगलती चली गई !
ज़िम्मेवरियों की लत लगी इस क़दर,
आवारगी मेरी हाथ मलती चली गई !
कलतक थे जो अपने वो बेवफ़ा हुए,
दिल्लगी मेरी मुझे छलती चली गई !
कैनवास बनकर ताउम्र जीता रहा तू,
ज़िंदगी रंग अपनी बदलती चली गई !