ज़िन्दगी का रूप फिर, कृशकाय होता जायेगा
शब्द यदि हर अर्थ का, पर्याय होता जायेगा
भाव का व्यापक बड़ा, समुदाय होता जायेगा
कवि हृदय से फूटकर जब गीत का होगा जनम
काव्य का आरम्भ इक, अध्याय होता जायेगा
अपने अन्तस में छिपे, मानुस को पहचान लो
यूँ तुम्हारे ज्ञान का, स्वाध्याय होता जायेगा
त्याग यूँ करते रहे जो, आप जीवन मूल्य का
दूसरों के प्रति निरन्तर, अन्याय होता जायेगा
ये व्यवस्था यूँ ही यदि, अपराध को ढोती रही
आप मन्थन कीजिये क्या, न्याय होता जायेगा
वक़्त ये संघर्ष का है, आप जो चेते नहीं
ज़िन्दगी का रूप फिर, कृशकाय होता जायेगा
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