ज़िद
ज़िद आँखों के दरिया को पलकों से बाँध जाने की
ज़िद जज़्बात के सैलाब को खुद में समाने की
ज़िद सन्नाटे में आहट को न सुन जाने की
ज़िद तन्हाई में बैठ कर खुद मुस्कुराने की
ज़िद उस आसमान को झुकते हुए न देखने की
ज़िद धूप में मुस्कान को मैला न होने देने की
ज़िद क़तरा भर ख़ुशी को भरपूर जीने की
ज़िद खुद से खुद को दूर न होने देने की
ज़िद भीड़ में भी तनहा सफ़र तय करने की
ज़िद पंख बिना परिंदा बन उड़ जाने की
ज़िद मुरझाते गुलों में खुशबू जगाने की
ज़िद बंद पलकों के समंदर में खो जाने की
ज़िद हर ठोकर से टकरा जाने की
ज़िद हर गलत शय को मात दे जाने की
ज़िद देखे बिना उस रब से लगन लगाने की
ज़िद यकीन को सच होता देख जाने की
ज़िद एक अश्क की , दरिया में न समाने की
ज़िद एक अश्क की , बस कोर पर ठहर जाने की |
……..डॉ सीमा वर्मा ( कॉपीराइट )