ज़िंदा
क्यों फिरे बेचैन सा तू?
भटकता रहा अपनी तलाश में तू?
दुनिया की खाके तू ठोकरें,
दर बदर फिरे हताश सा तू|
जिनको समझा अपना तूने,
वो बने आस्तीन के साँप क्यों?
बदल गई तेरी शख़्सियत,
ख़ुद को देख के हैरान तू|
मगर एक बात ना भूल तू,
अभी भी ज़िंदा है तू,
लड़ता जा इस क़ायनात से
अपने रास्ते पे बढ़ता चल तू
जैसे एतबार की तलाश में तू
वैसे प्यार की उम्मीद ना रख
ये दुनिया अब वैसी नहीं
शायद तेरी ये हसरत ग़लत
ख़ुद को दूसरों में ढूँढे क्यों
ज़िंदगी का ये सीख सबक़
यहाँ है सबकी फ़ितरत एक
बस सबके मुखौटे अलग
ख़ुद का तू ही उजाला है
अभी भी ज़िंदा है तू|