ज़िंदा दोस्ती
क्या हुआ ? कैसे हुआ ? कब हुआ ?
समझ ना पाऊं !
एक ही दिन में तू कैसे बदल गया ?
समझ ना पाऊं !
किसी की साज़िश है या ज़माने की फ़ितरत ?
दो दोस्तों में फूट डालने है की जो है बद-निय्यत !
तूने गैरों की बातों में आकर अहदे दोस्ती को
भुला दिया !
दिल से दिल के राब्ते को वहम की आग में
जला दिया !
इक दिन तेरे शक के ये बादल छंटेंगें !
तेरे अपने नज़दीकी भी जब तुझसे दूरियाँ बनाऐंगे !
तब मेरी दोस्ती की तूझे बहुत याद आऐगी !
मेरी यादें तुझे बेचैन कर बहुत रुलाएगी !
उस दिन तू मेरे पास चले आना !
तुझे मेरी दोस्ती का वास्ता कतई शर्मिंंदा ना होना !
तेरे इस्तिक़बाल को मेरी बाहें हमेशा खुली रहेंगी !
सोज़ -ए-दोस्ती मेरे दिल में ताउम्र ज़िंदा रहेगी !