ज़िंदगी
पड़ो मत
पहेली के
झमेले में दोस्तों
है जिन्दगी लम्बी
खींचती है ज्यो रस्सी
आये जब जो पहेली
पहले हल करो उसे
जिन्दगी में
है पहेली बिन
जिन्दगी सूनी
कभी भरी
कभी अधूरी
नहीं निकल पाया
हल पहेली का
जिन्दगी में
उलझते गये धागे
कौशिश की
जितनी सुझाने की
जियो जिन्दगी
मस्ती से
परिवार स॔ग
पहेलियाँ
यूँ
ही सुलझती जायेंगी ये
सुलझने के बनों साक्षी
जिन्दगी
यूँ
ही गुजर जायेगी
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल